आपने अभी रिसेंटली काबूल एयरपोर्ट की यह तस्वीर तो देखी ही होगी जहाँ बहुत सारे लोग अपनी जान बचाने के लिए एक चलते हुए हवाई जहाज में बैठने की नाकाम कोशिशें कर रहे है और उनमे से बहुत सारे लोगों की आसमान से गिरते हुए तस्वीरें भी दिखाई दी और इसी के साथ एक सवाल सब के मन में खड़ा हुआ
की क्या कोई आदमी किसी हवाई जहाज की खिड़की पर लटककर या उसके पहियों में छुपकर या प्लेन की छत को या किसी दारवाजे को पकड़कर क्या कोई इंसान ऐसे हवाई सफर कर सकता है और क्या वो बच सकता है ! दोस्तों जरा आप सोच कर देखिये बहुत ही मुश्किल लगता है यह और जितना यह सोचने में मुश्किल लगता है उससे कई ज्यादा खतरनाक ऐसा करना है !
यह बात संन 1986 की है पंजाब में दो भाई रहते थे एक का नाम था प्रदीप सैनी और दूसरे का नाम था विजय सैनी जिसमे विजय छोटा था उसकी उम्र 19 साल थी और प्रदीप बड़ा भाई था उसकी उम्र 23 साल थी दोनों लड़के के पिता एक किसान थे और यह दोनों भाई कुछ कारणों से भारत से बाहर विदेश जाना चाहते थे !
अब लीगली वीजा लेकर किसी देश में जाना तो उनके लिए बहुत मुश्किल था लेकिन उन्हें एक एजेंट मिला जिसने कहा कि तुम सीधे रास्ते से तो लंदन नहीं जा सकते लेकिन में तुम्हें सीक्रेटली प्लेन में लगेज यानी की समान रखने बाली जगह में अपनी सेटिंग से बैठा दूंगा और तुम्हें वहां पर एयरपोर्ट पर उतार दिया जाएगा !
वो दोनों भाई इस बात के लिए राजी हो गए लेकिन वो एजेंट बार बार बात टालता गया दिन बितते गए और उनके जाने का कोई जुगाड़ नहीं कर पाया यहाँ दोनों भाई परेशान किसी भी हाल में बाहर जाना था उनको लेकिन अब जाएं तो कैसे जाएं और दोस्तों यहाँ से शुरू होती है एक असली कहानी यह दोनों भाई सोचते है की कोई बात तो बन नहीं रही तो खुद ही कोशिश कर लेते है और खुद अपने बल पर लंदन चले जाते है अब यह निश्चय के बाद दोनों भाई पंजाब से दिल्ली आ जाते है और दिल्ली में यह इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के चकर काटने लगते है !
साल था 1986 सितम्बर का महीना था और यह दोनों भाई भी थोड़ा बहुत पढ़े लिखे थे दोनों भाई एयरपोर्ट के आस पास की इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करने लगे यह जानने लगे कि कब कहाँ कौन तैनात है , कितनी पुलिस कहाँ पर है और एयरपोर्ट के अंदर जाने के क्या क्या रास्ते है अब दोस्तों सीधी बात है की मेन डोर से तो अंदर जा नहीं सकते थे
इसलिए उन्होंने एयरपोर्ट के पूरे कम्पाउंड को समझा और यह जान लिया की एयरपोर्ट बहुत बड़ा है और इसकी कई कई जगह पर दूर दूर तक दीवारें फैली हुई है और यह जगह सुनसान भी है जहाँ कोई आता जाता नहीं है और आख़िरकार सितंबर से अक्टूबर तक एक महीने की रैकीग करने के बाद यह दोनों भाई एयरपोर्ट के अंदर घुसने का एक फाइनल रास्ता ढूंढ लेते है और इस सब के बीच वो लोग ब्रिटेन जाने बाली , लंदन जाने बाली कितनी फ्लाइटें है , उनके टाइमिंग क्या है यह सब भी पता लगाते है !
अब आखिरकार यह दोनों भाई एयरपोर्ट के अंदर दाखिल होते है और प्लान के मुताबिक एक प्लेन के रनवे पर चले जाते है जहाँ पर प्लेन टेकऑफ करने से पहले कुछ देर खड़े रहते है और इसके बाद यह दोनों भाई सिक्योरिटी और लोगों से बचकर प्लेन के लेंडिंग गेयर में बैठ जाते है प्लेन का लेंडिंग गेयर दरअसल बड़ा होता है
उसमे टायर के फोल्ड होने के बाद भी एक आदमी साइड में कोने में बैठ सके उतनी जगह होती है और ऐसे दो अलग अलग लेंडिंग गेयर में यानिकि एक लेंडिंग गेयर में प्रदीप अपने आप को छुपा लेता है और दूसरे लेंडिंग गेयर में उसका छोटा भाई विजय खुद को छुपा लेता है ! दरअसल इससे पहले इन दोनों भाइयों ने इसके बारे में फूल इन्फॉर्मेशन कलेक्ट की होती है
इसके बाद इन्होने वेट किया , वेट किया प्लेन में सारा लगेज पैक होने का , वेट किया सारे लोगों के बैठने का और वेट किया फ्लाइट के उड़ने का ! दोस्तों यह दो लड़के एक 23 साल का और एक 19 साल का वो लंदन पहुंचेगे या नहीं ! पहुंचेंगे तो भी किस हाल में यह भी उनको मालूम न था कुछ देर बाद फ्लाइट अपनी एक निश्चित हाइट पा लेती है
और पहिये अंदर ले लेती है और लेंडिंग गेयर को बंद कर दिया जाता है और दोस्तों यह बहुत ही खतरनाक मंजर होता है जब पहिये हिलते है , या पहिये में कम्पन होती है तो भूचाल सा महसूस होता है और यहां पर हाइट पकड़ने के बाद टेंप्रेचर और हवाओं से लड़ना तो एक और ही बात हो जाती है !
फ्लाइट 800 से 900 किलोमीटर पर हवर की स्पीड से चलती है और हवाएं कान फाड़ देने बाली होती है ! यह दोनों भाई टेकऑफ करते ही बहुत डर गए नजारा बहुत ही भयंकर था आवाज इतनी की कान फट जाए और ऊपर से फ्लाइट धीरे धीरे एक हजार से 1100 मिटर की हाइट पकड़ लेती है !
यहाँ पर ऑक्सीजन नहीं के बराबर और टेम्प्रेचर माइनस 50 से 55 डिग्री सेल्सियस ! इस हालात में किसी का भी जिन्दा रहना मुश्किल था और दिल्ली से लंदन का सफर करीब 9 से साढ़े 9 घंटे का अब दोस्तों करीब साढ़े 9 घंटे बाद यह प्लेन लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर लेंड करता है और प्लेन के लेंड करते ही सबसे पहला यहाँ पर एक इंसान पहुँचता है
जो था वहाँ पर लगेज कलेक्ट करने बाले टीम का एक मेंबर और यह इंसान जैसे ही वहां पहुँचता है वह सबसे पहले देखता है जो पहिया होता है उसके नीचे एक इंसान बेहद ठंडी से जूझ रहा है वो कांप रहा होता है रोड पर नीचे ! यह इंसान कुछ समझ नहीं पाता है यह कौन है ?
कहां से आया ? क्या करना है ? इसके बाद वो अपनी टीम को बताता है और पूरा स्टाफ वहां पर आता है पुलिस आती है , डॉक्टर आते है , एम्बुलेंस आती है ! एम्बुलेंस में उस लड़के को ले जाया जाता है और लंदन के हॉस्पिटल में उसकी शुरुआती ट्रीटमेंट शुरू होती है ! सांसे चल रही होती है लेकिन बदन अंदर से बहुत कांप रहा होता है
मानो अभी जान निकल जाएगी और अभी यह बेहोशी की हालात में था अब यहाँ पर दोस्तों हॉस्पिटल में डॉक्टर परेशान पता नहीं यह कैसे हो गया ? यह लडक़ा कहाँ से आया है ? और कैसे रनवे पर मिला लंदन के डॉक्टर उसे लगातार बचाने की कोशिश करते है धीरे धीरे उस पर ट्रीटमेंट का असर भी होता है
और वो कुछ दिन में होश में आता है और होश में आते ही प्रदीप सबसे पहले एक सवाल पूछता है की मेरा भाई कहाँ है ? अब दोस्तों यहाँ पर समझने बाली बात यह है की इस प्लेन से उस दिन सिर्फ एक ही लड़का मिला था जो था प्रदीप सैनी बड़ा भाई विजय सैनी किसी को नहीं मिला डॉक्टर और सारा स्टाफ फिर से परेशान हो जाते है
की यह किस की बात कर रहा है अब प्रदीप बातचीत करने की हालत में था इसलिए डॉक्टर , पुलिस को बुलाते है और सब मिलकर उससे पूछते है की आखिर उसके साथ हुआ क्या था ? और प्रदीप एक ही लत दोहराता है की मेरा भाई कहाँ है ? मुझे उससे मिला दो ! पुलिस और डॉक्टर कहते है की हमे आपका भाई वहां पर कहीं नहीं मिला था
और तब प्रदीप अपनी पूरी बात वहां पर कहता है की कैसे दो भाई दिल्ली एयरपोर्ट से बिना टिकेटस , बिना वीजा लेंडिंग गेयर में अपने आपको फिक्स करके लंदन की ओर बढ़े थे ! प्रदीप कहता है की हम दो भाई अलग अलग लेंडिंग गेयर में बैठे थे और वहां पर शोर इतना था की कुछ सुनाई नहीं दे रहा था मुझे लगा जैसे मेरे कान के पर्दे फट गए हो , मुझे जबरदस्त झटके लग रहे थे
फिर भी मैं अपने आपको वहां पर सेट करके संभाल के रखा मैं अपने भाई के बारे में भी चिंतित था कि उसके साथ क्या हो रहा होगा और इसके बाद अचानक बहुत ठंडी लगने लगी , हवा बहुत ही फास्ट चल रही थी , मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करना है धीरे धीरे मेरा शरीर सुन हो गया और उसके बाद पता नहीं क्या हुआ
अब आप लोग मुझे बताएं की मेरा भाई कहाँ है ? दोस्तों उस दिन तो पुलिस और डॉक्टर प्रदीप को कुछ नहीं बता पाए लेकिन उसके अगले दिन पुलिस को एक खबर मिली की लंदन के रिच्मोल्ड इलाके में एक मृत देह पड़ा है इसके बाद प्रदीप को उसकी तस्वीर दिखाई जाती है और प्रदीप उसे पहचान लेता है की यह उसका भाई है
यह फुट फुट कर रो रहा होता है और उसे अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा अफ़सोस हो रहा होता है ! पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल रहा होता है की प्रदीप के छोटे भाई विजय की मौत ऑक्सीजन की कमी और ठंड के कारण हुई थी और जब लोगों को प्रदीप की बात पर विश्वास होता है और पता चलता है की कैसे दो भाई भारत से लंदन प्लेन के लेंडिंग गेयर में बैठकर निकले थे
और कैसे उसमे से एक भाई बच गया तो किसी को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था इस पर कई रिसर्च टीमों ने रिसर्च किये और एक रिसर्च टीम ने इस के उपर पूरी छान बीन कर यह कहा की प्रदीप के बचने की कोई उम्मीद तो नहीं थी लेकिन कुछ बजह थी जिसके कारण यह उस विपरीत हालात में बच गया डॉक्टर और रिसर्च टीम के लिए प्रदीप का बचना एक चमत्कार था
लेकिन यह चमत्कार हुआ कैसे इसके पीछे मुख्य तीन कारण थे ! इस चमत्कार का पहला कारण था प्रदीप के शरीर का रिएक्ट करना बंद हो जाना ! जी हाँ दोस्तों प्रदीप का शरीर इस विपरीत हालात में इतना सहम गया की उसने विपरीत परिस्थिति में रिएक्ट करना बंद कर दिया और इसके कारण तेज आवाज का असर , तेज हवाओं का असर और माइनस 50 डिग्री टेंप्रेचर का असर भी प्रदीप की बॉडी पर नहीं हुआ
! यूँ मानो उसकी बॉडी फिलिंग लेस हो चुकी थी ! दूसरी चीज यह थी की प्रदीप के अंदर एक स्ट्रांग बिल पावर था और तीसरी चीज वो शरीर से मजबूत था ! यह चीजें थी जिसने उसे इस विपरीत परिस्थिति से बचाया अन्यथा इस विपरीत परिस्थिति में बचना अपने आप में एक चमत्कार है और प्रदीप एक अपवाद है !
आमतौर पर इस परिस्थिति में किसी भी इंसान की मौत हो सकती है ! तो दोस्तों इस तरह एक पंजाब का लड़का लंदन में पहुंचा हवाई जहाज के पहियों में खुद को छुपाकर और वो भी जिन्दा हालात में इसके बाद प्रदीप का लंदन की कोर्ट में मुकदमा भी चला और 28 साल बाद साल 2014 में प्रदीप को वहां पर वहां की कोर्ट ने उसे लंदन की नागरिकता दे दी !
आज प्रदीप की उम्र करीब 45 साल है ! प्रदीप अपने बीबी बच्चों के साथ आज भी लंदन में ही रहता है और वो लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट में ही बतौर ड्राइवर का काम करता है और दोस्तों आज भी प्रदीप को अपने जीवन में एक ही अफ़सोस है की वो बच गया लेकिन उसका भाई नहीं बच पाया ! तो दोस्तों यह थी एक सच्ची कहानी आपको कैसी लगी हमें जरूर बताइये और हमारे फेसबुक पेज को जरूर फॉलो करें !